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शंख महिमा : शंख कितने प्रकार होते है ? शंख रखने के क्या फायदे है ?

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पुराणों के अनुसार शंख चन्द्रमा और सूर्य के समान ही देवतुल्य माना गया है। मान्यता है कि शंख के मध्यभाग में वरुण, पृष्ठभाग में ब्रह्मा और अग्रभाग में गंगा और सरस्वती विराजती हैं। समुद्र-मन्थन से प्राप्त चौदह रत्नों में शंख का आठवाँ स्थान था। उच्चकोटि के शंख कैलास – मानसरोवर,  मालदीव, लक्षद्वीप, कोरामण्डल द्वीपसमूह, श्रीलंका और भारत में पाये जाते हैं।

कलियुग में ब्रह्मनाद कैसे सुना जा सकता है ?

कहा जाता है कि जो भी प्राणी भगवान् शिव के डमरू का ब्रह्मनाद सुन लेता है, वह भवसागर को पार कर जाता है। उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। संसार-सागर से वह मुक्ति प्राप्त करता है।

जगज्जननी माँ पार्वती भगवान् शिव से पूछती हैं कि हे जगन्नियन्ता! इस कलियुग में ब्रह्मनाद कैसे सुना जा सकता है, तब भगवान् शिव प्रसन्न मुद्रा में हँसते हुए कहते हैं कि ‘कलियुग में सच्चे मन से निष्ठापूर्वक और भावपूर्ण तरीके से शंखध्वनि सुनने का प्रयास करे, तो शंख से ब्रह्मनाद का श्रवण सम्भव है। कलिकाल में शुद्धात्मा से परिपूर्ण होकर शुद्ध मन और चेतनापूर्वक किये गये शंखनाद की ध्वनि सुननेमात्र से सांसारिक दुःखों का निवारण हो जाता है।’

शंख और स्वास्थ्य

धार्मिक दृष्टि से ही शंखनाद की महत्ता नहीं है, अपितु इसका सांस्कृतिक महत्त्व भी है। स्वास्थ्यवर्धन के लिये शंखनाद बड़ा उपयोगी है।

शंख के प्रकार

शंख कई प्रकार के होते हैं। दक्षिणावर्ती शंख, साधनोपयोगी शंख, गणेश शंख आदि। प्रत्येक का भिन्न-भिन्न महत्त्व है। सम्पन्नता, सुख-समृद्धि, आत्म शान्ति और पर्यावरण तथा वायुमण्डल के शुद्धिकरण हेतु भी शंख की महिमा मानी गयी है।


पांचजन्य और देवदत्त शंख

पौराणिक समय में देवी-देवता अपने पास शंख रखते थे। महाभारत काल में तो प्रत्येक योद्धा का अपना शंख होता था। पांचजन्य कृष्ण का और देवदत्त अर्जुन का शंख है। 


श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णन है

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो       देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्गं भीमकर्मा वृकोदरः॥
अनन्तविजयं राजा    कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुल: सहदेवश्च         सुघोषमणिपुष्पकौ।


दक्षिणावर्ती शंख और उसकी महत्ता

 जिस परिवार में दक्षिणावर्ती शंख की पूजा की जाती है, वह परिवार सदा सुखी और सम्पन्न रहता है। वहाँ धन की कभी कमी नहीं रहती है। दक्षिणावर्ती शंख को सफेद कपड़े में लपेटकर काठ के बर्तन या टोकरी में रखते हैं। अथवा सफेद कपड़ेसे बने हुए आसनपर रखा जाता है। दूध-चावल से पूजा की जाती है। इसका तान्त्रिक महत्त्व भी है। आसुरी शक्तियाँ इससे काफी दूर रहती हैं। इसीलिये तान्त्रिक लोग दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करते हैं। दक्षिणावर्ती शंखका मुँह दायीं ओर खुलता है। यह शंख अत्यधिक दुर्लभ है। यह शंख सामान्यतः सफेद रंगका ही उपलब्ध होता है।

कभी-कभी नीलाभ रंग का शंख मिल जाय तो उसपर हलके भूरे रंग की धारियाँ होती हैं। मातेश्वरी लक्ष्मी को यह शंख प्रिय है; क्योंकि दोनों का जन्म समुद्र से हुआ है। अतः शंख लक्ष्मी का सहोदर भाई है। विशेष पर्व एवं त्योहारों पर इसका पूजन होता है।


मोती शंख की विशेषता

मोती शंख की विशेषता है कि वह गोल आकार का होता है। इसमें एक सफेद धारी होती है, जो ऊपर से नीचे तक खींची होती है। यह मोती की तरह चमकदार होता है।

  • व्यक्ति को संन्यासी बनाने में इसका विशेष प्रभाव रहता है। योग और ध्यान के लिये यह शंख महती भूमिका का निर्वहन करता है।
  • स्वास्थ्यलाभ की दृष्टि से यह शंख दक्षिणावर्ती शंख से भी अधिक प्रभावकारी है। रातभर इस शंख में रखे हुए पानी से यदि त्वचा धोयी जाय तो त्वचा सम्बन्धी सारे रोग समाप्त हो जाते हैं। यदि त्वचा पर सफेद दाग हो तो शंख को थोड़े पानी में बारह घंटे रखे। उस पानी को कुछ दिन लगाते रहने से सफेद दाग नष्ट हो जाते हैं। रातभर इस शंख में पानी रखे और सुबह इसमें थोड़ा गुलाब जल डालकर बालों को धोने से बालों की सफेदी थम जाती है।
  • ऋषि आश्रमों, प्राचीन मन्दिरों तथा धार्मिक संस्थाओं में शंख देखे जा सकते हैं। तान्त्रिक लोगोंद्वारा भी तन्त्रविद्या को प्रगाढ़ता देने के लिये भी शंख-पूजा की जाती है।

प्राचीन काल में तो परिवार के पूजाघर तथा मन्दिरों आदि में शंखनाद सुनायी देता था, किंतु अब धीरे-धीरे इसका प्रचलन कम हो गया है। शंख को सुख-सम्पन्नता, समृद्धि और यश-कीर्ति के लिये लक्ष्मी का प्रतिरूप माना गया है। 


शंखों के प्रकार

शंखों के प्रकार

शंखों के अन्य तीन प्रकार इस प्रकार हैं –

  • दक्षिणावर्ती,
  • मध्यावर्ती और
  • वामावर्ती

जो शंख दाहिने हाथसे पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावर्ती शंख है। जो बीच में अँगुली डालकर पकड़ा जाता है, तथा जिस शंखका मुँह मध्य भाग में होता है, उसे मध्यावर्ती और जो शंख बायें हाथ से पकड़कर बजाया जाता है, वह वामावर्ती शंख कहलाता है।

शंख और भी अनेक प्रकारके होते हैं। जैसे- 

गोमुखी, लक्ष्मी, कामधेनु, विष्णु, देव, चक्र, सुघोष, मणिपुष्पक, शनि, राहु, केतु, शेषनाग, राक्षस, कच्छप आदि। 


शंख के घरेलु नुश्खे

  • यदि परिवार में कलह व्याप्त है, तो शंख में गाय का दूध भरकर छिड़काव करे
  • भवन में वास्तुदोष हो तो घर में शंख रखना चाहिये।
  • वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि गर्भवती महिला को शंख का जल पिलाने से उत्तमकोटि की सन्तान जन्म लेती है।

शंख और स्वास्थ्य

  • श्वास और फेफड़ों के रोग दूर करने के लिये प्रतिदिन शंख बजाना लाभप्रद है।
  • शंख में कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा होती है। इसमें गन्धक के गुण व्याप्त हैं। इसीलिये इसमें जल भरकर रखते हैं।
  • शंखध्वनि जहाँ तक प्रसारित होती है, वहाँतक के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
  • आयुर्वेद के अनुसार कहा गया है कि शंख के पानी से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। यह पानी आयुवर्धक है।
  • शंख की भस्म से कई प्रकार की औषधियाँ निर्मित होती हैं।
  • नियमित शंख बजाते रहने से खाँसी, दमा, पीलिया, ब्लड प्रेशर तथा हृदय- सम्बन्धी रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
 

घरों में कितने शंख रखने चाहिए ?

शास्त्रों में इसे महौषधि माना गया है। शंख में पंचतत्त्वोंका संतुलन बनाये रखने की अपार क्षमता होती है। उत्सव, पर्व, विवाह, पूजा-पाठ, हवन, आरती-जैसे समय में शंख बजाना मंगलमय माना जाता है। घर में दो शंख रखना अशुभ माना गया है। विषम संख्या में शंखों को रखना हितकर बताया गया है। शंख की पवित्रता बनाये रखने के लिये इन्हें पूजाघर तथा पवित्र स्थानों पर रखा जाना चाहिये।

शंख के अपवित्र हो जाने के कुछ कारण

शंख के अपवित्र हो जाने के कुछ कारण भी हैं, इनसे बचाव आवश्यक हैं, जैसे-दरार पड़ना या चटक जाना, टूटना-फूटना, जो शंख नहीं बजता हो, बजाते समय हाथ से गिर जाना, शंख-ध्वनि में अन्तर आ जाना, आकृति का सुन्दर नहीं लगना आदि।  टूटे हुए शंखों को नदी या तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिये।


  • शंखवाले जल से महिलाओं को बाँझपन से मुक्ति मिलती है। 
  • यदि शंखभस्म आयुर्वेद विधा से तैयार हो तो वह अजीर्ण, ग्रहणी, जिगर, तिल्ली, आमांश, अम्लपित्त आदि में उपयोगी है।

लक्ष्मी साधना में शंख का प्रयोग

लक्ष्मी साधना का सर्वश्रेष्ठ दिन दीपावली माना गया है। इस दिन दक्षिणावर्ती शंख को घर के पूजाघर में स्थापित कर पूजा-अर्चना की जानी चाहिये। शंख पर  कुमकुम से स्वस्तिक चिह्न अंकित करें तथा बायें हाथ से चावल का एक-एक दाना नित्य प्रति जप के साथ उसमें समाहित करें। जब वह पूरा भर जाय, तो चावल के दानों के साथ शंख को रेशमी लाल वस्त्र में बाँधकर व्यावसायिक प्रतिष्ठान के कार्यालय में स्थापित कर दे। यह सुख-समृद्धि प्रदान करेगा।


बच्चों के वाणी-सम्बन्धी विकारों को नष्ट करने के लिये भी शंख का पानी लाभदायक होता है। इसके द्वारा कुण्डलिनी जागरण का भी विधान है। शंख पवित्रता का परिचायक है। इसे पूजा-स्थलपर रखा जाना चाहिये। भारतीय संस्कृति में शंख पूजनीय एवं समस्त सुखों का प्रदाता माना गया है। अतः आस्था एवं निष्ठापूर्वक विधि विधान से जो शंख का रख रखाव करते हैं, उनकी श्री वृद्धि होती है।

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